रहा नहीं दिल मेरे पास

कोई कहे या रहे अनकही
कोई माने या रहे नासमझ
कहती हूँ मैं सच्ची बात
रहा नहीं अब मेरे पास
मेरा समझा अपना दिल!

दिल था मेरा कांच का टुकड़ा
चमकता जैसा साँच का मुखड़ा
लेकिन पूछे अब कोई हाल-ए-दिल …..
तोडा था तक़दीर लो कई बार
जोड़ा था मैं भी हर इक बार –
पूछके सवाल ये अपनी खुदा से
कि जोड़ूँ अब मैं कितनी बार
जोडू अब मैं कितनी बार?

होता एक दिल धड़कने को
हर एक से पूछे तो कहने को
रहा है जब बस एक टुकड़ा
तो जोड़ूँ उसे मैं किस कांच से?
न समझे ये जज़्बात कोई अब
और न समझे ये प्यार
खोया मैंने वो टुकड़ा भी
वो निशान-ए-गम छुपाने को!

आएगा जब अगली बार
हसके तक़दीर मेरे पास
यूँ हसके बोलूंगी मैं
तोड़ोगे क्या अब के बार
रहा नहीं दिल मेरे पास…
फिर भी पूछूं एक सवाल
पाया था क्या ख़ास मैंने
जब ये दिल रहे मेरे पास???

Originally written date: 29-6-2004

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Sandy

A freelance writer and blogger by profession since October 2011, interested in writing over a wide range of topics. Hope you enjoy my writings. I belong to one of the beautiful places of the world, Kerala, nicknamed as 'God's own country'.

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