रहा नहीं दिल मेरे पास
कोई कहे या रहे अनकही कोई माने या रहे नासमझ कहती हूँ मैं सच्ची बात रहा नहीं अब मेरे पास मेरा समझा अपना दिल! दिल था मेरा कांच का टुकड़ा चमकता जैसा साँच का...
मेरे कुछ हिन्दी कविताएं
कोई कहे या रहे अनकही कोई माने या रहे नासमझ कहती हूँ मैं सच्ची बात रहा नहीं अब मेरे पास मेरा समझा अपना दिल! दिल था मेरा कांच का टुकड़ा चमकता जैसा साँच का...
हमेशा हमारा लगता है कोई वो तो है बस मेरा अपना | मुस्कराहट में मुरछाया काली जैसे नींदों में खुली परछाई जैसे || कभी इंतज़ार कर लेता मुझे वो कभी बेकरार करवट लेता मुझे...
“लगने लगा प्यार अब उस हत तक गहरा कि चाहने लगी मैं उस हत तक वो ग़म कि आसू भी जो मिले तुमसे सोच में उल्चे वो मोती भी शायद नसीब न हो...
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